मुख्यसचिव के निर्देश भी यूपीसीएल में फांक रहे धूल, दोषी अधिकारी पर कार्यवाही करना छोड़ दिया जा रहा है प्रमोशन
देहरादून _ उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) में नीति और नियमों को ताला कैसे लगाया जाता है, खुद निगम के ही अधिकारी इसको बताने और बकायदा समझाने का भी काम करते है। उर्जा निगम में हालात इस कदर खराब हैं कि घपले- घोटालों को अंजाम देने वालों को तो प्रमोट किया जा रहा है और जो ईमानदारी से ड्यूटी कर रहे हैं उनको प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे एक नहीं कई प्रकरण लगातार सामने आ चुके हैं। इससे भी बदतर स्थिति यह है कि मुख्य सचिव तक के आदेश को निगम प्रबंधन कूड़ेदान में डाल रहा है। मुख्य सचिव के पत्र पर कार्रवाई करना तो दूर की बात है, पत्र तक का संज्ञान नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या उर्जा निगम का प्रबंधन मुख्य सचिव से भी बड़ा हो गया हैं ? क्या सरकार ने उर्जा निगम को मनमानी करने की पूरी छूट दी हुई है। जब इस विभाग के मंत्री का दायित्व खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी संभाल रहे हैं तब निगम प्रबंधन की कार्यशैली और पारदर्शी होनी चाहिए। लेकिन निगम में ठीक इसके उलट हो रहा है।कुल मिलाकर निगम के उच्चाधिकारी सरकार को भी आईना दिखाने का काम कर रहे है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या शासन के अधिकारी अराजक हो चुके अफसरों पर लगाम लगा भी पाएंगे या यूं ही यूपीसीएल के अफसर जुगलबंदी करके चहेते कार्मिकों पर मेहरबानियां लुटाकर निगम को घाटे में धकेलते रहेंगे। प्रदीप कंसल के मामले विभागीय अधिकारियों की अलग-अलग राय से कई सवाल भी उठ रहे हैं। एक ओर जहां कंसल पर कार्रवाई करने के बजाय कोई जांच लंबित न होना बता क्लीन चिट देकर पदोन्नत कर दिया गया। जबकि पदोन्नति के बाद मांगी गई जानकारी में कंसल पर जांच एवं कार्रवाई लंबित बताई जा रही है। फीका सवाल यह कि जब जांच लंबित है तो उनकी पदोन्नति को डीपीसी में कैसे रखा गया। दूसरा यह कि जब अफसरों को यह मालूम था तो लंबित जांच का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया ?