ईमानदार मंत्री धन सिंह रावत के सहकारिता विभाग में भर्ती घोटाला, क्या केवल विभाग के अधिकारियों ने खिलाया गुल या नेताओं की भी सेटिंग है फूल, सहकारिता भर्ती घोटाले के नाम पर विपक्ष क्यों बना हुआ है मित्र विपक्ष ?
उत्तराखंड प्रदेश की जीरो टॉलरेंस वाली भाजपा सरकार में कार्यभार संभालते ही सहकारिता भर्ती घोटाला हो गया है। धामी सरकार 2.0 में ईमानदार छवि के सहकारिता मंत्री धन सिंह रावत पिछली धामी सरकार 1.0 में भी इसी सहकारिता विभाग के मंत्री थे। वहीं इतनी ईमानदारी और सतर्कता के बाद भी विभाग में नौकरी देने के नाम पर जमकर भ्रस्टाचार हो गया है। अब मामला खुल गया तो जांच के नाम पर कार्यवाही की लीपा पोती चल रही हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये हैं कि क्या केवल अधिकारियो ने ही अपने परिवार और चहेते लोगो को नौकरी दी या फिर सत्ताधारी नेताओं ने भी सेटिंग की है। वही विपक्ष के भी सहकारिता भर्ती घोटाले के नाम पर केवल रस्म अदायगी वाले बयान सामने आ रहे है। अभी तक भ्रष्टाचार के मामले पर कांग्रेस नेताओं ने कोई भी बड़ा आंदोलन या प्रदर्शन नहीं किया हैं। लेकिन इतना जरूर है कि मीडिया के सवाल पूछने पर भ्रष्टाचार के खिलाफ ईंट से ईंट बजाने का दावा जरूर किया जा रहा है।
उत्तराखंड में बेरोजगार रोजगार के लिए भटक रहे हैं और प्रदेश में जो भर्ती निकलती भी है उसमे नेता, अधिकारी अपने करीबियों, परिवार के लोगो को नौकारी बाँट रहे हैं। जिला सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी के 423 पदों पर तीन जिलों के रिजल्ट जारी होने के बाद जिस तरह से चयनित अभ्यर्थियों के नाम सामने आ रहे हैं, वह चौंकाने वाले हैं। चुने गए अभ्यर्थियों में भाई-भतीजावाद के तमाम उदाहरण सामने आए हैं। नौकरी अगर सरकारी हो, तो कुछ भी चलेगा की तर्ज पर चेयरमैन, निदेशक और प्रबंधक जैसे पदों पर बैठे लोगों के बच्चों को उसी विभाग में चपरासी बनने में भी गुरेज नहीं है।
अभी तो सहकारिता विभाग में मात्र तीन जिलों का रिजल्ट जारी किया गया है, तब ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। अन्य जिलों की आगे की प्रक्रिया पर रोक के बाद जांच शुरू हो गई है। सहकारिता विभाग की ओर से जिला सहकारी बैंकों में भर्ती में अनियमितता की शिकायत मिलने के बाद मंत्री डॉ.धन सिंह रावत के निर्देश पर शासन ने मामले की जांच शुरू करा दी है।
सहकारिता विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो सहकारी संघ के एक चेयरमैन का भतीजा, उत्तरकाशी जिले के दूसरे अधिकारी का बेटा, पिथौरागढ़ के एक चेयरमैन के छोटे भाई की पत्नी, देहरादून में तैनात एक संविदा कर्मचारी की पत्नी, जिला सहकारी कार्यालय में तैनात एक अधिकारी का बेटे सहित तमाम उदाहरण सामने आ रहे हैं, जिनका इस भर्ती प्रक्रिया में चयन हुआ है।
*काम नहीं हुआ तो शिकायत कर दी*
इतना ही नहीं भाई-भतीजावाद के इस खेल में तमाम नेताओं और अफसरों का नाम भी सामने आ रहा है, जिनकी सिफारिश पर तमाम अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया। इसमें कुछ नेता सीधे तौर पर सहकारिता से जुड़े हैं तो कई ने दूसरे नेताओं और अफसरों से सिफारिश लगवाई। इधर, इस मामले में सहकारिता से जुड़े अफसर अब कुछ भी कहने से बच रहे हैं। सहकारिता से जुड़े एक बड़े अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कुछ नेताओं के रिश्तेदारों का चयन नहीं हुआ तो उन्होंने दूसरे नेताओं को साथ लेकर मुख्यमंत्री से मिलकर इस मामले में शिकायत कर दी। जबकि वह खुद अपने रिश्तेदारों को चयनित कराए जाने को लेकर सिफारिश लगवा रहे थे।
राज्य निर्माण के बाद यह दूसरा मौका है, जब सहकारिता विभाग में सीधी भर्ती प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इससे पहले वर्ष 2016-17 में भर्तियां हुईं थीं। तब भी हरिद्वार और अल्मोड़ा जिले में हुई भर्तियों के मामले में विवाद हुआ था, जो अब भी कोर्ट में विचाराधीन है। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब बीते कई वर्षों से विभाग में भर्तियां ही नहीं हुईं, तो कामकाज कैैसे चल रहा था? विभाग के पुष्ट सूत्रों की मानें तो पिछले तीन सालों में बैकडोर से 250 से 300 संविदाकर्मियों को नियमित कर दिया गया। अगर इस मामले की भी जांच की जाए तो तमाम नए राज सामने आ सकते हैं।