उत्तराखंड में बढ़ते पलायन पर आप अध्यक्ष ने जताई चिंता, कहा- राज करने वाली दोनो ही दलो की सरकारों ने केवल किया दिखावा
आप प्रदेश अध्यक्ष एस एस कलेर ने उत्तराखंड के पहाड़ों से लगातार बढ़ते पलायन पर चिंता जाहिर की है । कलेर ने कहा ,आज राज्य को बने 20 साल का वक्त हो चुका,शैशवकाल से प्रदेश वयस्क हो चला लेकिन हालात आज भी वहीं है जो सालों पहले थे । इन हालातों के लिए उन्होंने राज्य की बीजेपी कांग्रेस सरकारों को मुख्य जिम्मेदार बताया जो ,सूबे में राजनीति के दम पर राज करते रहे लेकिन कभी भी उन्होंने सूबे के विकास के बारे में नहीं सोचा। पहाड़ों तक मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाने पर नाकाम होने के चलते आज पिछले 10 सालों में पांच लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं ।
आप अध्यक्ष ने बताया, राज्य सरकार पलायन को रोकने में पूरी तरह से नाकाम है। उन्होंने कहा कि मैदानी क्षेत्रों में बढ रही आबादी और खाली होते पहाड आने वाले समय में प्रदेश की तस्वीर और पहचान दोनो ही बदल देंगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड एक पहाडी राज्य है ,लेकिन पहाडों में सरकार द्वारा लोगों को मूलभूत सहूलियतें ना देना इसका सबसे बडा कारण है। आज भी पहाडों में स्वास्थय,सडक ,बिजली पानी की किल्लत से लेकर शिक्षा की बिगडी स्थिति लोगों को पलायन करने पर मजबूर कर रही है।
आप अध्यक्ष ने एक आरटीआई का जिक्र करते हुए कहा कि ,आरटीआई के खुलासे में पलायन के जो आंकडे सामने आए हैं वो हैरान करने वाले हैं। ये बडे दुर्भाग्य की बात है कि 10 सालों में हमारे प्रदेश में 5,02,707 लोग अब तक पलायन कर चुके हैं जो अभी भी लगातार जारी है। प्रदेश के 734 गांव पूरी तरह भुतहा हो गए हैं। इस आरटीआई में बताया गया है कि 3946 लोग स्थायी रुप से अपनी जमीनों को छोडकर पलायन कर चुके हैं ,यानि कि ये गांव भी भुतहा बनने की श्रेणी में आ गए हैं। प्रदेश के 6338 गांवों के कुल 1,18,961 लोग हमेशा के लिए पलायन कर चुके हैं। 3,83,726 लोग बेहतर सुविधाओं के लिए पलायन को मजबूर हुए जो अपने पैत्रिक गांव आते जाते हैं।
आज इस प्रदेश को बने हुए पूरे 20 वर्ष हो चुके हैं। लेकिन 20 वर्षों के इस राज्य में आज भी ऐसी व्यवस्थाएं विकसित नहीं की गई हैं ,जिनकी वजह से पलायन को रोका जा सके। पलायन इस प्रदेश में उस दीमक की भांति है ,जो प्रदेश को अंदर से खोखला कर चुका है। उन्होंने कहा कि यहां एक कहावत प्रचलित है, कि पहाड का पानी और जवानी कभी पहाड के काम नहीं आती। लेकिन इस कहावत के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है। इसकी जिम्मेदार हैं यहां सत्ता में रही सरकारें ,जिन्होंने इस गंभीर बीमारी पर कभी ध्यान नहीं दिया। आज पहाडों में स्कूल ,अस्पताल,सडकें तो जरुर बना दी गई हैं ,लेकिन ना तो वहां डाॅक्टर ,ना ही शिक्षक और ना ही गुणवत्ता देखने को मिलती है। आज भी पहाडों में महिलाओं को प्रसव करवाने दूर किसी सामुदायिक केन्द्र में ले जाना पडता है। जहां सफर के दौरान कई दर्दनाक घटनाएं घटित हो चुकी हैं। स्कूलों के हाल इतने बुरे हैं कि लोगों को मजबूरन अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पलायन करना पडता है।
देश में कई पहाडी राज्य हैं ,लेकिन उन राज्यों में सरकारों ने पलायन को रोकने के कई उपाय किए हैं। मौजूदा सरकार ने कोरोना काल में स्वरोजगार देने की बात कही थी, लेकिन सरकार ये बताए कि कितने लोगों को सरकार इस योजना से जोडने में कारगर साबित हुई ,और कितने लोगों को सरकार कोरोना अनलाॅक के बाद प्रदेश में रोक पाई। प्रदेश में सरकार ने ऐसे कोई भी संसाधनों को विकसित नहीं किया जिनका लाभ यहां के बेरोजगारों को मिल पाए । युवाओं को पढाई और रोजगार के लिए मजूबरी में पलायन करना पडता है। उनके साथ उनके अभिभावक भी पलायन को मजबूर है। सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं कि, प्रदेश में रोजगार विकसित कर सके। उन्होंने कहा कि पर्यटन को लेकर यहां की सरकार करोंडो रुपये खर्च करती है ,लेकिन अगर नीतियां ठीक होती तो बार बार ये नीतियां औंधे मुंह नहीं गिरती ।
आप अध्यक्ष ने कहा,जनता पिछले 20 सालों से सब देख रही है और अबकी बार इन सरकारों के बहकावे मे आने वाली नहीं। वो अतीत के पिछले 20 सालों को देखते हैं तो उन्हें अब इन राजनैतिक दलो के चुनावी जुमले याद आने लगते जहां वो पलायन को मुद्दा बनाकर राजनैतिक रोटियां तो सेक लेते हैं लेकिन धरातल पर उसको अमलीजामा पहनाना भूल जाते हैं जा जानबूझ कर जनता को गुमराह करने का इनका राजनैतिक एजेंडा है।
आप अध्यक्ष ने कहा, अब समय आ गया जब , पलायन पर गंभीर होना पड़ेगा नहीं तो आने वाला समय पहाड़ों के लिए किसी विनाश से कम नहीं होगा । पहाड के पहाड़ जंगलों में तब्दील हो जाएंगे, गांव वीरान हो जाएंगे,पहाड़ की संस्कृति,सभ्यता महज किताबों तक ना सिमट जाय जो हर हाल में ना तो उत्तराखंड के हित में है और ना तो उत्तराखंड के लोगों के हित में।