उत्तराखंड

तीन जनपदो की टीम के हत्थे चढ़ा अल्फ़ा सरदार

आखिरकार 2 साल बाद मिल ही गई उत्तराखंड वन विभाग को बड़ी क़ामयाबी

राजभवन से पकड़ा गया बंदरों का ‘नेता’ पकड़ा, झुंड को ऐसे करता था आगाह


देहरादून। उत्तराखंड राजभवन में पिछले दो साल से अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए मुसीबत बना ‘अल्फा बंदर’ यानी बंदरों के नेता को वन विभाग और रेस्क्यू टीम ने शनिवार को मशक्कत के बाद दबोच लिया। उसके बाद इसे हरिद्वार के चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर भेजा गया है। इसे दबोचने के लिए देहरादून, हरिद्वार और मथुरा से टीम बुलाई गई थी।

वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक ‘अल्फा बंदर’ पिछले दो साल से लगातार राजभवन में मुसीबत का सबब बना हुआ था। यह कई बार अधिकारियों और कर्मचारियों पर हमले की कोशिश कर चुका था। इसे पकड़ने के लिए वन विभाग की टीमों ने राजभवन परिसर में कई बार पिजड़ा लगाया। जाल फैलाकर पकड़ने की कोशिश भी की। लेकिन, हर बार वह बच कर निकल जाता था। आखिर शनिवार को वह दो साल बाद वन विभाग और रेस्क्यू टीम की ओर से लगाए गए पिंजड़े में फंसा। उसके बाद कर्मचारियों और अधिकारियों ने राहत की सांस ली।

मालसी रेंज के वन क्षेत्राधिकारी मोहन सिंह रावत ने बताया कि ‘अल्फा बंदर’ बंदरों के एक झुंड का नेता होता है। यह बेहद चालाक होता है। यह प्राय: अपनी पूछ खड़ी रखता है। साथ ही पूछ का अंतिम हिस्सा मोड़कर रखता है। इससे झुंड के बाकी बंदर अंदाजा लगाते हैं कि यही हमारा नेता है। अल्फा बंदर अपनी आवाजों से झुंड के बाकी बंदरों को खतरों से आगाह करता रहता है। यह बंदर झुंड में सबसे आगे चलता है। उसके दिए संकेतों के आधार पर झुंड के बाकी बंदर आगे बढ़ते हैं।

बता दें कि राजधानी के कई इलाकों में बंदरों का जबरदस्त उत्पात है। लॉकडाउन से पहले वन विभाग की टीमों ने शहर में बंदरों को पकड़ने के लिए अभियान चलाया था। उस दौरान 300 से अधिक बंदरों को पकड़कर हरिद्वार स्थित चिड़ियापुर पहुंचाया था। उसके बाद रेस्क्यू सेंटर की ओर से कई दिनों बाद उन्हें राजाजी टाइगर रिजर्व के घने जंगल में छोड़ दिया। लेकिन, कुछ दिनों बाद बंदरों के यह झुंड दोबारा राजधानी पहुंच गए।

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