सोशल मीडिया को हरीश रावत ने बनाया अपना हथियार, क्षैतिज आरक्षण के मुद्दे पर 2016 के अपराधी को तलाशने की उठाई मांग
#क्षैतिजीय_आरक्षण को आरक्षण को लेकर राज्य सरकार की भूल दर भूल, राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों पर महंगी पड़ रही है। राज्य का हाईकोर्ट में इतना बड़ा पैराफर्नलिया/तंत्र है, क्या उनको यह मालूम नहीं था कि यदि किसी याचिका/अर्जी में कोई सुधार करना है या अतिरिक्त दस्तावेज लगाने हैं, तो उस पर समयावधि का कानून लागू होता है। माननीय हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट ऐसे स्थान तो हैं नहीं कि जहां आप जब चाहें मुंह उठाए संशोधन की अर्जी लगा दें। क्षैतिजीय आरक्षण को लेकर उस अपराधी को भी खोजा जाना आवश्यक है, जिस अपराधी के दबाव में 2016 में तत्कालीन राज्यपाल महोदय ने विधानसभा द्वारा क्षैतिजीय आरक्षण को लेकर सर्वसम्मति से पारित किए गए विधेयक को हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया और उस विधेयक को वापस भी नहीं लौटाया ताकि विधानसभा फिर से उसको पारित न कर सके। आखिर किसी का तो दबाव था महामहिम राज्यपाल के ऊपर! क्या तत्कालीन मुख्यमंत्री ऐसी दबाव की स्थिति में थे या केंद्र सरकार ऐसे दबाव की स्थिति में थी कि उस पारित बिल पर हस्ताक्षर नहीं किये और मामले को दबाकर के बैठे रहे! यह अकेला प्रसंग नहीं है जिसमें गवर्नर ने राज्य सरकार द्वारा भेजी गई फाइल पर हस्ताक्षर न किए हों और फाइल को अपने पास रोककर के बैठ गए हों, ऐसा ही मामला #लोकायुक्त और लोकायुक्तों के चयन को लेकर के भी है, वह फाइल भी सर्वसम्मति से जिसमें नेता प्रतिपक्ष के हस्ताक्षर भी हैं, लोकायुक्तों का चयन कर माननीय राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजी गई थी। कई क्वेरीज मौखिक और स्वयं मैं महामहिम राज्यपाल के पास गया था, लेकिन वह फाइल राज्यपाल महोदय के भवन से बाहर नहीं आई-नहीं आई और राज्य विधिवत चयनित लोकायुक्त से वंचित रह गया। ये दो ऐसी बड़ी घटनाएं हैं, जिसका दंड उत्तराखंड को भोगना पड़ रहा है।
अब क्षैतिजीय आरक्षण का एक ही समाधान है विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए और नए सिरे से कानून पारित कर समाधान ढूंढा जाए। मुझे यह नहीं लगता है कि वर्तमान स्थितियों में कोई और राहत हमको माननीय उच्च न्यायालय या माननीय उच्चतम न्यायालय से मिल पाएगी।
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Narendra Modi
Pushkar Singh Dhami BJP Uttarakhand