उत्तराखंड

ग़ैर नहीं होगा अब ग़ैरसैण

देहरादून- ग़ैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद एक बार फिर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का रात्री विश्राम ग़ैरसैण में होगा। मौक़ा है 15 अगस्त, आज़ादी के पर्व का। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के साथ ग़ैरसैण में पहले ध्वजारोहण करेंगे, उसके बाद कार्यक्रम का भी आयोजन होगा। जिसमें उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी ग़ैरसैण को लेकर सरकार बड़ी घोषणायें और शिलान्यास कर सकती है। जिसकी जानकारी खुद प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दी है।

अब जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बतौर मुख्यमंत्री ग़ैरसैण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया है। तो स्थानीय स्तर पर भी ग़ैरसैण के विकास की उम्मीद जगने लगी है।

15 अगस्त को ग़ैरसैण में रात्री विश्राम के बाद अगले दिन मुख्यमंत्री रावत अपनी टीम के साथ दूधातोली स्थित वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के समाधि स्थल तक ट्रेक करते हुए जाएँगे। जहाँ पर कोरोना वॉरीअर्ज़ का सम्मान किया जाएगा।

ग़ैरसैण पर नज़र डाले तो, 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखण्ड गठन के बाद गैरसैंण को राज्य की राजधानी घोषित करने की मांग राज्य भर में उठने लगी। साल 2000 में उत्तराखण्ड महिला मोर्चा ने गैरसैंण राजधानी की मांग को लेकर खबरदार रैली निकाली। इसके बाद 2002 में गैरसैंण की मांग को लेकर श्रीनगर में जनता का प्रदर्शन हुआ, और फिर गैरसैंण राजधानी आंदोलन समिति का गठन किया गया। इन्हीं आन्दोलनों के फलस्वरूप उत्तराखण्ड सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में दीक्षित आयोग का गठन किया, जिसका कार्य उत्तराखण्ड के विभिन्न नगरों का अध्ययन कर उत्तराखण्ड की राजधानी के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थल का चुनाव करना था। दीक्षित आयोग ने राजधानी के लिए 5 स्थलों को (देहरादून, काशीपुर, रामनगर, ऋषिकेश तथा गैरसैण) चिन्हित किया, और इन पर व्यापक शोध के पश्चात अपनी 80 पन्नो की रिपोर्ट 17 अगस्त 2008 को उत्तराखण्ड विधानसभा में पेश की। इस रिपोर्ट में दीक्षित आयोग ने देहरादून तथा काशीपुर को राजधानी के लिए योग्य पाया था, तथा विषम भौगोलिक दशाओं, भूकंपीय आंकड़ों तथा अन्य कारकों पर विचार करते हुए कहा था कि गैरसैंण स्थायी राजधानी के लिये सही स्थान नहीं है।

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