जानें, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान किसने दिया था और क्यों वह मृत्यु शैया पर पड़े रहे
जानें, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान किसने दिया था और क्यों वह मृत्यु शैया पर पड़े रहे
दिल्ली। वेदों के रचयिता वेदव्यास जी ने महाभारत महाकाव्य की रचना की है। इस महाकाव्य में प्रमुख स्तंभ भीष्म पितामह को बताया गया है। इनके पिता शांतनु थे, जो कि हस्तिनापुर के राजा थे। जबकि माता गंगा थी। एक बार जब शांतनु आखेट के लिए निकले तो आखेट करते-करते वन में दूर निकल गए। इसके बाद अंधेरा होने के चलते वह वापस नहीं आ पाए। उस समय उन्हें वन में एक आश्रम मिला। जहां उनकी मुलाकात सत्यवती से हुई और दोनों मन ही मन में एक दूसरे को चाहने लगे।
अगले दिन राजा शांतनु ने सत्यवती के पिता के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे सत्यवती के पिता ने स्वीकार कर लिया। हालांकि, सत्यवती ने एक शर्त रखी कि हस्तिनापुर का राजा उनका पुत्र होगा। इसी इच्छा पूर्ति हेतु भीष्म पितामह ने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली। इस त्याग के कारण उनके पिता ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था।
कालांतर में राजा शांतनु की मृत्यु के बाद पांडु राजा बना, लेकिन पांडु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र राजा बना। वह हमेशा चाहता था कि उसका वारिस ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बने। जब दुर्योधन बड़ा हुआ तो उसने पांडु के पुत्रों को पांच गांव देकर सब कुछ अपने पास रख लिया। इस द्वेष भावना के साथ-साथ कई अन्य कारणों से महाभारत युद्ध हुआ। इस युद्ध में कौरव साम्राज्य का पतन हो गया।
इस युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को परास्त किया था। उस वक्त तीरों के प्रहार से वह पूरी तरह घायल हो गए थे, लेकिन भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु के कारण जीवित रहे और बाण शैया पर विश्राम करते रहे। पवित्र गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण में, दिन के उजाले में, शुक्ल पक्ष में अपने प्राण त्यागता है, वह मृत्यु भवन में लौट कर नहीं आता है। जब सूर्य उत्तरायण हुआ तो भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण की वंदना कर अंतिम सांस ली।