*आमची मुंबई या फिर केवल शिवसेनेची मुंबई*
हाल के दिनों में मुंबई शिव सैनिकों की क्रियाकलापों द्वारा ज्यादा चर्चा में रही है । मीडिया में शिवसेना के छुटभैये नेता अपनी छोटेपन वाली हरकतों द्वारा ज्यादा चर्चा में बने रहे है। इस देश की जनता ने, शिव सैनिकों द्वारा कथित उद्धव ठाकरे के अपमान की, बदलापूर्ण घटनाओं का लाइव प्रसारण टीवी पर खूब देखा है। इस संदर्भ में हम मुंबई के रिहायशी इलाके के एक वयोवृद्ध रिटायर्ड नौसेना अफसर के साथ हुई मारपीट और एक युवक का सर गंजा किए जाने की घटनाओं को देख सकते हैं। वीडियो में छुटभैये नेता द्वारा साफ-साफ यह कहा जा रहा है कि ठाकरे हमारा भगवान है उसके खिलाफ कुछ भी बोलोगे तो ऐसा ही सबक सिखाया जाएगा।
महाराष्ट्र की बात हो और शिवसेना का नाम ना आए या छत्रपति शिवाजी का नाम ना आए ऐसा हो नहीं सकता। पूज्य बाला साहब ठाकरे जी द्वारा स्थापित शिवसेना जिसका मुख्य नारा था *मुंबई महाराष्ट्राची शान आहे अन शिवसेना शिवरायांचे वाण आहे . जय शिवराय- जय महाराष्ट्र* अब किस कदर हिंसक हो चुकी है इसके उदाहरण देश की जनता टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से देख रही है। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है और पूरे देश से लाखों लोग मुंबई रोजी-रोटी की तलाश में जाते हैं। बॉलीवुड की कंगना राणावत का शिवसेना के खिलाफ खुलकर बोलना शिव सैनिकों को कतई नहीं भाया और इसका बदला बीएमसी के कंधे पर बंदूक रखकर लिया गया। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिव सैनिकों का यह बदला विकृत स्वरूप इस कदर आत्मघाती हो जाएगा, शायद बाला साहब ठाकरे ने कभी इसकी कल्पना भी न की होगी। शिव सेना के संस्थापक खुद एक कार्टूनिस्ट है और अभिव्यक्ति की आजादी का पूरा सपोर्ट करते थे आज भी उनके द्वारा चलाया गया मुखपत्र सामना अपने बेबाक विचारों के लिए जाना जाता है। *सवाल आज यह है कि शिवसेना अपने मूलभूत विचारधारा को छोड़कर एक पार्टी विशेष की चाटुकारिता में आखिर कितना गिरेगी ! जिस कार्टूनिस्ट के चुटीले व्यंग्यो ने मराठी माणूस को शिवसेना के झंडे तले संगठित किया आज उसी के शिवसैनिक एक कार्टून पर वृद्ध व्यक्ति की जानलेवा मारपीट पर उतारू हो गए !*
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत कहते हैं कि मुंबई पर पहला अधिकार मराठी लोगो का है, ठीक बात है भाई, लेकिन मुंबई अकेले मराठों ने ही नहीं बनाई है आज मुंबई जिस मुकाम और समृद्धि पर खड़ी है उसके पीछे हर एक मुंबईकर का योगदान है चाहे वह भारत के किसी भी कोने से क्यों ना आया हो। शायद यही वजह है कि हर भारतीय को मुंबई अपने जैसी लगती है और यहीं से नारा आया था आमची मुंबई, विगत कई वर्षों में शिव सैनिकों का यह प्रयास रहा है कि आमची मुंबई से पहले यह शिवसेना की मुंबई है। और यह बात बताने के लिए शिव सैनिकों ने सत्ता का भारी दुरुपयोग किया है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में कोई भी साधारण व्यक्ति मुंबई जाने से , रहने से कतराएगा , मुंबई में रहने वाले हर सिविलियन के जानमाल की सुरक्षा करने का दायित्व मुंबई पुलिस और प्रशासन दोनों का है। यदि इसमें भी भेदभाव किया गया तो कोई मुंबई भला क्यू जाएगा ! शिव सैनिकों की पहचान अब यह हिंसक राजनीति ही होती जा रही है जिसका असर मुंबई की खराब होती छवि में दिखाई दे रहा है। महाविकास अघाडी सरकार का यह कर्त्तव्य है कि वो सबका ख्याल रखे, न कि एक वर्ग विशेष का । अपने अनियंत्रित शिवसैनिको को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी भी उद्धव ठाकरे जी की बनती है क्यो कि यही लोग ठाकरे के नाम पर भी धब्बा लगा रहे हैं, संजय राऊत जी तो अपना पल्ला यह कहकर झाडते दिख रहे हैं कि ऐसे हिंसक कार्यो के पीछे शिवसेना नेतृत्व का कोई हाथ नहीं है जबकि उनकी खुद की जबान *नाॅटी* हो जा रही है। इन समस्त प्रकरणों में उद्धव ठाकरे जी का मौन रहना धीरे धीरे आमची मुंबई की अवधारणा को ही कहीं समाप्त न कर दे और मुंबई सिर्फ मराठों तक ही न सिमट जाए, यह सोचना जरूरी है। योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी बनाने की घोषणा कर दी है और कंगना ने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है इसी प्रकार यदि हर राज्य के निवासी मुंबई छोड़ने लग गए तो आमची मुंबई भला कहां रह जाएगा !!
सूर्यकांत त्रिपाठी, स्वतंत्र पत्रकार
इलाहाबाद