खुलासा: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एक और खुलासा, जिस टाइगर सफ़ारी को बताया गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट, प्रधानमंत्री कार्यालय को ही नही है उस प्रॉजेक्ट की जानकारी, पीएमओ की आपत्ति के बाद नप सकते है उत्तराखंड वन विभाग के कई और अधिकारी
विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के तहत पाखरों रेंज में जिस टाइगर सफारी के निर्माण को वन विभाग के कुछ आला अफसरों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा था, दरअसल उसकी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को थी ही नहीं।
पीएमओ ने इस संबंध में उत्तराखंड शासन या वन विभाग को कभी कोई दिशा-निर्देश भी जारी नहीं किए थे। बताया जा रहा है कि तीन आईएफएस अधिकारियों पर गाज के गिरने के बाद अब इसकी भी जांच हो सकती है कि किसने इस प्रोजेक्ट के साथ प्रधानमंत्री का नाम जोड़ा। बताया तो यहां तक जा रहा है उल्टे पीएमओ ने इस मामले में एतराज भी जताया था। शासन स्तर से लेकर वन मुख्यालय स्तर तक कहीं कोई ऐसा आदेश या गाइडलाइन प्राप्त नहीं हुई, जिसमें पीएमओ के स्तर से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरों रेंज में टाइगर सफारी के निर्माण का कोई आदेश हो।
जब टाइगर सफाई का काम शुरू हुआ था, तात्कालीन पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ ने इस संबंध में कॉर्बेट निदेशक से पीएमओ के ड्रीम प्रोजेक्ट संबंधी किसी पत्र के बारे जानकारी मांगी थी, लेकिन कॉर्बेट निदेशक ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करा पाए थे।
अब जब यह बात साफ हो गई है कि पीएम मोदी का नाम इस्तेमाल करके टाइगर सफारी के नाम पर पेड़ काटने से लेकर अवैध निर्माण और तमाम अनियमितताएं की गईं, तो इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि इस मामले में दूसरे अधिकारी भी नप सकते हैं। बताया जा रहा है कि पीएमओ पहले ही इस मामले का संज्ञान ले चुका है कि किसके स्तर से पीएम मोदी का नाम इस प्रोजेक्ट में डाला गया।
अनियमितताओं पर नजर डाले तो :
– कॉर्बेट टाइगर रिजर्व पार्क के तहत कंडी रोड निर्माण, मोरघट्टी और पाखरों वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण, पाखरों वन विश्राम गृह के समीप जलाशय का निर्माण किया गया था। इसके अलावा पाखरों में प्रस्तावित टाइगर सफारी में वृक्षों के अवैध पातन किया था। जिस पर एनटीसीए के जांच दल ने कार्रवाई की आख्या प्रस्तुत की थी।
– टाइगर सफारी निर्माण के लिए मात्र 163 पेड़ काटे जाने थे, लेकिन अनुमति से कहीं अधिक पेड़ काट दिए गए।
– इसके अलावा कंडी रोड का निर्माण, मोरघट्टी और पाखरो वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण, जलाशय का निर्माण, टाइगर सफारी, वृक्षों का पातन के संबंध में वैज्ञानिक, प्रशासनिक व वित्तीय स्वीकृति तक नहीं ली गई।
– यहां कंक्रीट का ढांचा खड़ा किया गया, जो अवैध था। हालांकि बाद में इस गिरा दिया गया था।
– पाखरो से कालागढ़ पेट्रोलिंग रोड के आसपास के क्षेत्र से बड़ी मात्रा में मिट्टी हटाई गई, जो भारतीय वन अधिनियम 1927 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के प्राविधानों के विरूद्ध है।
– इस दौरान जेएस सुहाग को मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक का कार्यभार अतिरिक्त रूप में आवंटित था।
– ऐसे तमाम मामले और है, जिनकी परतें अभी खुलनी बाकी हैं।
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साभार: अमर उजाला हिंदी दैनिक