राजनीति

खिलेगा कमल, चलेगी झाड़ू या होगी साइकिल की सवारी, क्या वाकई चल गया है यू.पी. मे “बुलडोज़र बाबा” का जादू ?

बीते 07 मार्च को उत्तर प्रदेश मे सातवें चरण का मतदान समाप्त होने के साथ ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर नतीजों के एग्जिट पोल की झड़ी लग गयी है। मज़ेदार बात यह है कि यही सारे इलेक्ट्रोनिक मीडिया वाले, यूपी के पांचवे छठे और सांतवे चरण में, मुख्य रूप से, केवल रूस और यूक्रेन की लड़ाई दिखा रहे थे। बीते दस दिनों से चुनावी खबरें कम और आजतक, ज़ी न्यूज़, R. भारत, इंडिया TV जैसे दिग्गज टीवी चैनल अपने-अपने प्लेटफॉर्म पे युद्ध जैसा माहौल बनाकर, काल्पनिक वार रूम बनाकर, राष्ट्रवाद के मुद्दे को ज्यादा हवा देते हुये दिखाई पड़ रहे थे। दीगर बात यह है कि ‘राष्ट्रवाद’ ही वो मुद्दा है जिस पर बीजेपी, इन पाँच चुनावी राज्यों पर ज्यादा बल दे रही थी। उत्तर प्रदेश के प्रथम दो चरणो के चुनावों में विपक्ष लगातार बेरोजगारी और मंहगाई जैसे मुद्दों को लेकर हमलावर था तो सत्तारूढ़ दल केवल धर्म, भव्य मंदिर निर्माण, बुलडोज़र और राष्ट्रवाद पर ही कायम था। यूपी के मुख्यमंत्री योगी जी हर चुनावी रैली मे बड़े गर्व से अपने बुलडोज़रों की बात करते ना थक रहे थे कि तभी तीसरे चरण मे, चुनाव से सत्तारूढ़ पार्टी को, जैसे हवा अपने पाले से हटती हुयी नज़र आने लगी और फिर चौथे चरण से चुनावी प्रचार की कमान, सीधे तौर पे प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने हाथ मे ले ली और भला हो रूस के पुतिन साहब का जिन्होने यूक्रेन पर 24 फरवरी को “राष्ट्रहित की दुहाई” देकर हमला बोल दिया। बस फिर क्या था, भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया की एक धुरी, दुनिया को परमाणु बम के हमलों से बचाने मे लग गयी और हर चैनल पर एक काल्पनिक वार रूम बन गया। बेचारा यूपी का मतदाता कनफ्यूज़ हो गया कि पहले दुनिया को बचाने वाली डिबेट्स टीवी पर देखे या चुनावी मुद्दों को समझने का प्रयास करे। इसी बीच केंद्र सरकार के चार मंत्री यूक्रेन से भारतीय छात्रों को बचाने मे लग गए और मीडिया उनको फुल कवर करने मे लग गया और इधर यूक्रेन मे “परमाणु बम” गिरने से पहले ही यूपी का सातवाँ चुनावी चरण पूर्ण हो गया।

अब इस पूरे घटनाक्रम मे स्पष्ट तौर पर, यूपी के चुनावों मे अनायास ही ‘राष्ट्रवाद का मोदी मंत्र’ काम कर गया है। राजनेता बड़े चतुर लोग होते हैं, उन्हें पता होता है कि कब, जनता की कौन सी नब्ज़ थामनी है। यूपी के विधानसभा चुनावों को भला कौन सा दल नहीं जीतना चाहता है ! कहावत भी है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी तक का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। फिलहाल तो सत्तारूढ़ बीजेपी अंतिम पाँच चरणों के मतदान की बदौलत मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है। एक अनुमान के मुताबिक इस बार बीजेपी 210+ सीटें जीत सकती है, उसे कड़ी टक्कर समाजवादी पार्टी से मिलने की उम्मीद है जोकि यादव और मुस्लिम वोटबैंक की बदौलत 140+ की स्थिति बनाती दिख रही है। बीएसपी और कांग्रेस जैसी पार्टियां तो अपना पुराना जनाधार भी खोती हुई दिखाई दे रही हैं।

उधर पंजाब मे जनता, सत्तारूढ़ कांग्रेस और बीजेपी, शिरोमणि अकाली दल आदि से अपना मोहभंग करते हुये दिख रही है, केजरीवाल का दिल्ली मॉडेल शायद पंजाबियों को भी रास आ रहा है, उन्हे आम आदमी पार्टी मे फ्री बिजली-पानी के साथ साथ, उत्तम शिक्षा का भी भविष्य दिख रहा है। बड़ी बात जिसने अंदर ही अंदर काम किया है वो है नशेमुक्ति की बात जो केजरीवाल के मुख्य एजेंडे मे शामिल है। पंजाब मे इस बार स्पष्टतः अगर AAP की सरकार बनती दिख रही है तो इससे पूरे देश मे एक संदेश जाएगा कि मोदी की टक्कर अब ‘ईमानदार केजरीवाल’ ही ले पाएंगे बशर्ते उनके मंत्री और नेता किसी तरह के भ्रष्टाचार मे ना फंसे।

उत्तराखंड और मणिपुर मे बीजेपी अपने विकासकार्यों और मोदी के चेहरे के दम पे सरकार बनाते दिख रही है। अगर कहीं टक्कर है तो वो राज्य है गोवा, जहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों मे कांटे की टक्कर होती दिख रही है। गेंद अन्ततः किस पाले गिरेगी यह तो 10 मार्च का दिन ही बताएगा लेकिन बीजेपी वहाँ कमजोर पड़ी है तो उसका कारण है कि दिवंगत मनोहर पर्रिकर जी के बाद गोवा मे बीजेपी वालों के पास कोई दमदार लोकल नेता नहीं है। इन पाँच राज्यों के चुनावों मे सबसे ज्यादा आकर्षक और लोमहर्षक चुनाव उत्तर प्रदेश के रहे हैं , एक तो बड़ा राज्य, ऊपर से गुंडागर्दी, बेरोजगारी, अशिक्षा और जातिवाद से जूझता राज्य, इस बार के चुनाव मे यहाँ बाकी किसी भी चीज से ज्यादा हावी रहा है योगी बाबा का बुलडोज़र ! वैसे तो पूरे चुनाव मे लगभग हर रैली मे योगी जी अपने बुलडोज़रों और उनके कार्यों का उल्लेख करते आए हैं लेकिन बेरोजगारी, मंहगाई जैसे मुखर मुद्दों पे वो कुछ भी स्पष्ट बोलने से बचते रहे। यूपी मे बीजेपी की सरकार बनना लगभग-लगभग तय है परंतु उसे एक मजबूत विपक्ष भी मिलता हुआ दिख रहा है जोकि लोकतन्त्र के हित मे बहोत ही अच्छा है। सपा का वोट शेयर इस चुनाव मे ज़रूर बढ़ा है लेकिन वो सरकार बनाने के लिए नाकाफी होता हुआ दिख रहा है। आगामी सरकार, मजबूत विपक्ष होने से, जन विकास के सभी कार्य करने को विवश होगी और जनता के प्रति अधिक जवाबदेह भी होगी। उत्तर प्रदेश मे लगातार दो बार, एक ही पार्टी की सरकार बनने से एक नया अभूतपूर्व इतिहास भी लिखे जाने पूर्ण संभावना है। 10 मार्च 2022 का दिन निश्चय ही यूपी के लोगो के लिए राजनीतिक इतिहास की गौरव गाथा के साक्षी बनने का दिन होगा।

*सूर्यकान्त त्रिपाठी, (भूतपूर्व नौसैन्यकर्मी)*

*(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)*

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