Friday, April 26, 2024
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उत्तराखंड

हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश धर्माचार्य प्रमुख की मुख्यमंत्री पुष्कर धामी से मुलाकात, सनातन धर्म के प्रचार प्रसार को लेकर की चर्चा

सनातन धर्म प्रचारक एवं हिंदू युवा वाहिनी उत्तराखंड के प्रदेश धर्माचार्य प्रमुख शंकरानंद सरस्वती ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर सनातन धर्म के प्रचार प्रसार एवं हिंदू युवा वाहिनी संगठन का 13 जिलों में विस्तार हेतु अवगत कराया। सनातन धर्म से संबंधित सभी पहलुओं पर वार्तालाप किया। धर्माचार्य प्रमुख ने कहा है कि उत्तरकाशी जिले के गौरशाली में आश्रम निर्माण एवं शौचालय निर्माण तथा बच्चों के बैठने और छात्रावास की पर्याप्त व्यवस्था के लिए एवं आने वाले समय में वेद शिक्षण संस्थान निर्माण हेतु जमीन की उपलब्धता आदि सभी समस्याएं प्रदेश धर्माचार्य प्रमुख द्वारा माननीय मुख्यमंत्री जी के समक्ष रखी। धर्माचार्य प्रमुख ने कहा है कि उनकी भावी योजनाएं बहुत है जैसे कि देवभूमि में सभी जिलों में वेद विद्यालय खोलने का सपना, और देवभूमि में निराश्रित गायों हेतु गौशालाओं का निर्माण सनातन धर्म के प्रचार एवं प्रसार हेतु सभी हिंदुओं को संगठित करना, देवभूमि में जो नवयुवकों में नशा प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ रही है उसको योग, वेद एवं पुराण के माध्यम से देवभूमि को नशा मुक्त करना इत्यादि। मुख्यमंत्री की तरफ से उन्हें पूर्ण आर्थिक मदद का भरोसा दिया गया। धर्माचार्य प्रमुख जी ने कहा है कि इतने कम समय में धामी सरकार ने उत्तराखंड मे बहुत अच्छा काम किया। युवा मुख्यमंत्री को उन्होंने साधुवाद एवं विजय होने का आशीर्वाद दिया।स्वामी शंकरानंद सरस्वती जी ने कहा है कि आजादी के बाद से हमारा सांस्कृतिक, बौद्धिक और शैक्षणिक विमर्श जाने-अनजाने वामपंथी और पश्चिमी प्रभाव से आतंकित अंग्रेजी परस्त लोगों के चंगुल में चला गया था, जहां भारतीय तत्वों के प्रति उपेक्षा या हीनता का और पश्चिमी चीजों के प्रति श्रद्धामिश्रित भय का भाव होता है। इसी भाव के कारण हम आज भी चाणक्य को भारत का मैकियावेली कहते हैं तो कालिदास को भारत का शेक्सपियर और समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन, जबकि कालक्रम, प्रतिभा और उपलब्धियों-तीनों ही दृष्टियों से चाणक्य, कालिदास और समुद्रगुप्त ऊपर हैं। इसी मानसिकता के कारण साहित्य के माध्यम से भारतीय परिवेश में कानून की गुत्थियों को समझने के लिए किसी भारतीय कृति की जगह हैरी पॉटर को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है। समय आ गया है कि इस सांस्कृतिक-बौद्धिक संघर्ष में हम अपने सांस्कृतिक अतीत की गौरवशाली जड़ों से जुड़ें। इसी में हमारा भविष्य है।

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