विदेश

रूस का आक्रमण जारी, यूक्रेन की “राष्ट्रभक्ति” का पलड़ा भारी

21 वीं सदी मे दुनिया एक ऐसे युद्ध की गवाह बन रही है जिसे यदि समय रहते रोका नहीं गया तो समूचा विश्व, तृतीय विश्वयुद्ध की आंच मे भभक सकता है। रूस और यूक्रेन के बीच का तनाव अंततः एक भयावह युद्ध के रूप मे सामने आया है। यूक्रेन स्वयं को मजबूत करने के लिए अमेरिका और नाटो देशो के साथ जो गलबहियाँ करने मे लगा था वो खुद उसे इतनी भारी पड़ जाएगी, इसका अंदाज़ा यूक्रेन को कतई नहीं था। बीते फरवरी माह के उत्तरार्द्ध से ही ऐसी खबरें वैश्विक जगत मे उछाल मार रही थीं कि रूस किसी भी वक़्त यूक्रेन पर हमला बोल सकता है, परंतु रूस हमेशा से ही इसे नकारता रहा था। रूस के राष्ट्रपति पुतिन की महत्वाकांक्षा रूस के सीमांत इलाको को मजबूत करने की और इस क्षेत्र मे अमेरिका के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने की थी, इसी वजह से वो लगातार अमेरिका को चेतावनी और यूक्रेन को नाटो मे शामिल ना होने की धमकी भी दे रहे थे।

ध्यातव्य है कि यूक्रेन, एक समय मे सोवियत संघ से अलग होकर ही स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र बना था और अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों के भरोसे पर उसने अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर भी खासा ध्यान नहीं दिया हुआ था। सन 1994 मे हुये एक समझौते के तहत, तत्समय यूक्रेन ने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु, अपने परमाणु हथियार भी रूस के हवाले कर दिये थे जिसके बदले मे उसे, रूस और अमेरिका दोनों से सामरिक सुरक्षा की गारंटी मिली हुयी थी। परंतु आज के बदले परिदृश्यों मे यही रूस, अपने सुरक्षाहितों की दुहाई देकर जबरन यूक्रेन मे तख्तापलट करवाना चाहता है जिसके मूल मे, यूक्रेन मे, कठपुतली सरकार की स्थापना करना है ताकि रूस उसे अपने इशारों मे नचा सके। 24 फरवरी को बेलारूस की सीमा पे डटे रूसी सैनिको ने अचानक से यूक्रेन पे धावा बोल दिया। शुरुआत मे यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की, अमेरिका और नाटो देशों से यूक्रेन की सुरक्षा की भीख मांगते रहे लेकिन रूस की धमकियों के चलते, न तो अमेरिका न ही नाटो और उसके सहयोगी देश कोई भी सीधे तौर पे यूक्रेन की मदद को सामने नहीं आए तो जेलेंस्की को जल्दी ही समझ मे आ गया कि उन्होने पश्चिमी देशों के बहकावे मे आकर बहुत बड़ा खतरा मोल ले लिया है। ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज़ पे उन्होने राष्ट्रवासियों को भावनात्मक रूप से सिविल गुरिल्ला युद्ध करने की अपील की ताकि यूक्रेन बच सके और उनकी यह अपील काम कर गयी। यूक्रेनी नागरिकों ने अपनी फौज के साथ राजधानी कीव मे मोर्चा संभाल लिया और इस भयावह युद्ध के सातवें दिन तक लगभग हर यूक्रेनी , राष्ट्र प्रेम की भावना से इतना ओतप्रोत हो गया कि उन्होने कीव और खरकीव मे, रूसी सेना के बख्तरबंद टैंक रोक लिए हैं। 21 सदी के समूचे विश्व को यूक्रेनी नागरिकों से , कठिनतम समय मे, राष्ट्र प्रेम का यह जज़्बा ज़रूर सीखना चाहिए खासकर भारत के लोगों को जो सिर्फ टैक्स और वोट देकर ही , राष्ट्र के प्रति जिम्मेवारी की इतिश्री कर लेते हैं।

आज युद्ध प्रारम्भ हुये लगभग आठ दिन बीत चुके हैं, यूक्रेन के मुख्य शहर खारकीव, मारिओपोल और राजधानी कीव मे रूसी बमबारी का निशाना बने सैन्य ठिकाने और रिहायशी बिल्डिंग युद्ध की भयानक तस्वीर बयां कर रहे हैं। यूक्रेन अभी भी EU मे सदस्यता पाने को प्रयासरत है और राष्ट्रपति जेलेंस्की अपनी बचकाना हरकत पर ज़रूर पछता रहे होंगे कि उनके गलत निर्णयो ने अनायास ही यूक्रेन को युद्ध मे धकेल दिया है। संप्रति, रूस पर पश्चिमों देशों ने जम कर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये हैं ताकि उसे युद्ध पश्चात, आर्थिक मंदी मे धकेला जा सके और उससे महाशक्ति का दर्जा छीना जा सके।

समूचा विश्व दोनों देशो के बीच युद्धविराम कराने मे प्रयासरत है और कूटनीति से इस मसले को समझाने की सलाह दे रहा है लेकिन रूस के आक्रामक तेवर कहीं रुकते नहीं नज़र आ रहे हैं। भारत और पाकिस्तान जैसे देश इस मामले मे तटस्थ बने हुये हैं जोकि उनकी मजबूरी भी है क्यों कि भारत को रूस और अमेरिका दोनों से ही सहयोग प्राप्त है व दोनों की ही ज़रूरत है। इस पूरे घटनाक्रम मे अमेरिका और उसके नाटो देशों की भूमिका, पर्दे के पीछे के खलनायक के रूप मे रही है, पहले तो उन्होने यूक्रेन जैसे शांत देश को उकसाया कि वो कुछ भी कर सकता है और फिर मौका आने पर ,स्पष्टतः सैन्य मदद के लिए मना कर दिया, पुनश्च नाटो की सदस्यता देने से भी मना कर दिया और बेचारे सीधे सादे यूक्रेनी नागरिक, रूस की आक्रामकता ,कोप का शिकार हो गए।

रूस अपने रुख पे कायम है कि यूक्रेन जब तक हथियार डाल आत्मसमर्पण नहीं कर देता तब तक वो रुकेगा नहीं। दोनों पक्षों के प्रतिनिधिमंडल के बीच दो दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं जोकि लगभग बेनतीजा ही साबित रही हैं क्यों कि उभय पक्ष अपनी-अपनी बातों पे अडिग हैं। इसी बीच रूस ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की भी धमकी दे डाली है जिससे पूरा विश्व सकते मे आ गया है। उभय पक्ष भारी धन-जन की हानि उठा रहे हैं और देखना ये है कि रूस के इस आक्रामक प्रहार से यूक्रेन कब तक अपनी सुरक्षा कर पाता है यद्यपि कि उसे अन्य पश्चिमी देशो से सामरिक मदद की बातें भी कही गयी हैं। यूक्रेन पे रूस के हमले ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी राष्ट्र को बहकावे मे नहीं आना चाहिए और हमेशा राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत रहना चाहिए, एक संप्रभु राष्ट्र के लिए आर्थिक विकास ही नहीं बल्कि सामरिक मजबूती का होना भी अत्यंत अनिवार्य होता है।

लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी एक स्वतंत्र पत्रकार है।

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