द्रौपदी ! समावेशी लोकतंत्र की गरिमा या अपमान की विषयवस्तु ? सर्वोच्च पद का अपमान, क्या सह जाएगा हिंदुस्तान !!
भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को लेकर, कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता द्वारा सदन के बाहर की गयी असभ्य टिप्पणी से पूरा देश आहत हो उठा है। सत्तारूढ़ भाजपा के लगभग सभी नेता, विपक्षी कांग्रेस पार्टी पर लगातार हमलावर हैं और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन एक महिला महामहिम को इस प्रकार का अपमान झेलना पड़ा हो ।
बता दें कि यह मुद्दा तब गरमाया जब कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के लिए “राष्ट्रपति” शब्द की जगह “राष्ट्रपत्नी” शब्द का इस्तेमाल कर दिया। अधीर रंजन की , सदन के बाहर की गयी इस असभ्य टिप्पणी ने, पल भर में पूरे देश में आग लगा दी और भारत के ‘प्रथम नागरिक का पद’ क्षण मात्र में सियासी हंगामें का आधार बन गया ।
हमारा देश संविधान से चलता है जिसका अनुच्छेद 52 यह कहता है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा और वह लिंग, जाति, क्षेत्र के भेदभाव से परे होगा। तो निश्चय ही ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द का इस्तेमाल, असंवैधानिक, असभ्य और निम्न मानसिकता का परिचायक है। आज कांग्रेस पार्टी के नेता द्वारा इस प्रकार का संबोधन , समूचे भारत को लज्जित करने वाला है जहाँ एक ओर हमारे प्रधानमंत्री समावेशी लोकतंत्र की बात करते हुए, आदिवासी समाज की एक गरीब महिला को, सर्वोच्च पद पर चुनाव हेतु नामित करने का कार्य करते हैं और वह महिला चुनाव जीतकर भारत देश की प्रथम नागरिक बनती हैं, उनके लिए किसी नेता द्वारा “राष्ट्रपत्नी” शब्द का प्रयोग , नीची सोच और घोर भर्त्सना किए जाने योग्य है। सारा देश राष्ट्रपति जी के इस अपमान से अत्यंत क्षुब्ध व दुखी है। जब हम एक सभ्य और उन्नत समाज की कल्पना करते हैं तो वहां नारी कल्याण , गरीब अन्त्योदय उत्थान और समावेशी लोकतंत्र को ही स्थान दिया जा सकता है न कि किसी नस्लवादी, पुरूषवादी सोच को।
सही मायनों में यदि देखें तो आज हमारा लोकतंत्र, चंद स्वार्थी नेताओं की वजह से जीर्ण-शीर्ण होता जा रहा है और सारे राजनेता , नीतिगत विरोध की बजाए व्यक्तिगत और पार्टीगत विरोध में संलिप्त नजर आते हैं। जो धीरे धीरे संवैधानिक समरसता की मूल भावना को ही खोखला करते जा रहे हैं। अब भी समय है कि सभी पार्टी के राजनेता , अगर अपने संवैधानिक शपथ के साथ-साथ अपेक्षित दायित्वों का भी निर्वहन करें तो संसदीय कार्य सुचारू रूप से चलेंगें और समावेशी लोकतंत्र की सकारात्मक सोच, धरातल पे आकार ले सकेगी ।
द्वारा
सौरभ मिश्र
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)