उत्तराखंड

त्रिवेंद्र है तो मुमकिन हैः आपदाएं रोकी नहीं जा सकती, नुकसान जरूर मिनिमाइज किए जा सकते हैं

देहरादून। उत्तराखंड सात साल में दूसरी बार भयंकर प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहा है। प्राकृतिक आपदाओं को आने से रोका नहीं जा सकता लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि अगर सिस्टम चुस्त-दुरूस्त हो तो आपदा के आफ्टर इफेक्ट्स को कम जरूर किया जा सकता है और यह कार्य करने में उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार काफी हद तक सफल रही है। बीते रोज हुए घटनाचक्र के बाद जिस तेजी से खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और पूरा अमला सक्रिय हुआ, उसी का नतीजा रहा कि इस आपदा के नुकसान को मिनिमाइज करने की दिशा में सरकार ने बड़ा कदम उठाया और यह कारगर भी सबित हो रहा है।

वर्ष 2013 में जब केदारनाथ में जल प्रलय आई थी तो हमारा सिस्टम इसके लिए तैयार नहीं था। बहरहाल, केदारनाथ की आपदा से सबक लेकर कुछ सकारात्मक कार्य भी राज्य में हुए। मसलन, राज्य की अपनी आपदा प्रबंधन फोर्स का गठन किया गया है। एनडीआरएफ की तर्ज पर बनी एसडीआरएफ ने चमोली के रैणी में आई आपदा के तत्काल बाद मोर्चा संभालने में देर नहीं लगाई। मौके पर पहले से तैनात आईटीबीपी और एसडीआरएफ के जवानों ने हादसे के चंद घंटों बाद ही रेस्कयू अभियान तेजी से प्रारंभ कर दिया था।
इधर, हादसे के वक्त देहरादून में मौजूद रहे सूबे के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सारे कार्यक्रम रद्द कर बगैर किसी देर के सीधे आपदा प्रभावित क्षेत्र का रूख कर लिया। इसी का नतीजा रहा कि पूरा सिस्टम अलर्ट पर आ गया। स्थानीय प्रशासन की मदद को देहरादून से लेकर दिल्ली तक सिस्टम हरकत में रहा। मौके पर मौजूद रहे मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हर स्थिति का बारीकि से अवलोकन कर राहत-बचाव में जुटे दलों का हौंसला बढ़ाने का तो काम किया ही साथ ही उनकी मौजूदगी ने यह भी दर्शाया कि अगर ऐसे समय में नेतृत्व सक्रिय हो तो बड़ी से बड़ी आपदा से भी निपटा जा सकता है। देर शाम रैणी से देहरादून लौटने के बाद सचिवालय में भी सीएम ने आला अधिकारियों की बैठक लेकर पल-पल का अपडेट लेते रहे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों का भी इस मुश्किल समय में साथ मिला। केंद्र से तत्काल ही एनडीआरएफ की टीमों से लेकर सेना, वायुसेना और नौसेना की स्पेशल टीमें उत्तराखंड पहुंच रही हैं।

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