Saturday, May 4, 2024
Latest:
उत्तराखंड

चमोली हादसे के बाद सुस्त हो सकती है ऊर्जा प्रदेश की रफ़्तार, केंद्र से मिलने वाली नये हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की मंज़ूरी में फँस सकता है पेंच

चमोली हादसे ने उत्तराखंड के ऊर्जा प्रदेश बनने की दिशा में तेज़ी से बढ़ते कदमों की रफ़्तार को फ़िलहाल कुछ समय के लिए सुस्त करने  का काम किया है। विभागीय आँकड़ो पर नज़र डाले तो प्रदेश की अलकनंदा, भागीरथी, भिलंगना, पिंडर जैसी मुख्य नदियों में 9600 मेगावाट क्षमता के 70 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट तैयार होने हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ इन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के निर्माण के बाद राज्य के लोगों को न सिर्फ सस्ती बिजली मिलती, बल्कि प्रदेश को प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष तौर पर 25 हजार करोड़ रुपये के क़रीब का राजस्व भी प्राप्त होता। साथ ही एक लाख के करीब रोजगार के नय मौके भी पैदा होते। वहीं अब तपोवन हादसे के बाद इन प्रोजेक्ट पर भी संकट के बादल गहराने लगे हैं। उत्तराखंड में अगस्त 2013 से इन प्रोजेक्ट का हो रहा इंतजार अब और बढ़ना तय है। कहीं केंद्र के इको सेंसटिव जोन के मानकों में राज्य से हो रहे भेदभाव, तो कहीं सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के तीन मंत्रालयों की संयुक्त रिपोर्ट के साथ संयुक्त शपथ पत्र दाखिल न होने से देरी हो रही थी। जिसमें अब और समय लगना तय है। उत्तराखंड के आर्थिक और रोजगार के लिहाज से हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट बेहद अहम हैं।

ऊर्जा निगम अपनी बिजली जरूरतों को पूरा करने को हर साल 6 हज़ार करोड़ से ज्यादा की बिजली खरीद रहा है। हर साल खरीदी जाने वाली ये बिजली हमेशा विवादों के घेरे में रहती है। एक्सचेंज से लेकर बिजली खरीद के होने पावर परचेज एग्रीमेंट पर विवाद उठते रहे हैं। उत्तराखंड में अगर ये पावर प्रोजेक्ट धरातल पर उतरते तो लोगों को महंगी बिजली से निजात मिलती। हर साल बढ़ने वाले पावर टैरिफ से भी राहत मिलती। यूपीसीएल जो हर साल 7000 करोड़ का राजस्व जुटाता है, उसमें बड़ा हिस्सा विकास कार्यों पर खर्च होता। वहीं नए प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद ऐसे खर्चो पर भी लगाम लगने की उम्मीद थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *